मां

Amrita Singh
1 min readMay 12, 2024

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जैसे बिन कहे शब्दों का कोई खज़ाना ,

जैसे आंखों से दिल का हाल समझ लेने का कोई बहाना,

जब कभी सोचती हूं बचपन अपना, हमेशा वो नज़र आती है चट्टान सी ,

कभी निर्भय , अटल, अविचल और तो कभी कोमल , बेबस , लाचार सी ,

सोचती थी मां ऐसी क्यों है ?

मेरे लिए सुकून की एक पोटली और दुनिया के लिए एक एक पहेली

लेकिन अब जैसे सब समझ आता है , खुद को आईने में देख कर अपना बचपन नज़र आता है

मां बिन कहे कितना कुछ कर जाती है

कभी खुद से लड़ कर , कभी समाज से , कभी अपनो से

अपने चेहरे के हर शिकन को मुस्कुराहट में छुपाए ,

आज जब देखती हूं उसे , तो लगता है जैसे कितना कुछ समझना सीखना बाकी है ,

लेकिन आज भी वो मुस्कुरा के केह देती है , हम है न सब देख लेंगे।

काश ये शक्ति मुझ में भी होती ,

तो ये दुनिया और खूबसुरत लगती ।

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Amrita Singh

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